अनजान हैं तुमसे, पहचान बनाकर क्या करोगे। संस्कारों तले दबे है हम, नज़रे मिलाकर क्या करोगे। तुमसे नहीं जमाने से रुठे है, तुम मनाकर क्या करोगे। ख़ुद को कैद कर लिया है आईने में, तुम तस्वीर बनाकर क्या करोगे। हम ज़िद के एक सतम्भ हैं, तुम कसमें देकर क्या करोगे। हम खुश हैं अकेले चलकर, साथ चलकर क्या करोगे। छिपा लिया है खुद को अंधेरे में, तुम दीपक बनकर क्या करोगे। ©आधुनिक कवयित्री better alone 😔