मै खुद ही अपने में अजनबी ठहरा भला कोई पहचानेगा भी तो कैसे भूल ही गए हम तो कबका खुद को कुछ भी तो नहीं रहा पहले जैसे की हम खिलखिलाते भी थे या यूं ही बस बेजान थे उम्र यूं ही ढली या कोई अरमान थे बस चलते रहते है आंखे खुली ओठों पर रहती है सिलाई क्या याद है कुछ आखिरी बार कब खिलखिलाई थी कितना खुशी होती अगर वो सब फिर लोट आता अब तो दिल का करने में भी संकोच आता है जो था बहुत हसीन था पहले जैसा कुछ नही रहेगा इतना तो यकीन था कुछ पल शायद और जी लेते कंधो पर बोझ नहीं जिंदगी से सब कुछ कहते कभी किसी की खिड़की की ओर देखते कभी छत पर पड़ोसी के छत पर धूप सेकते दोपहर का खाना हो या शाम को कहीं जाना हो रोड पर चलकर गाड़ियों को रोकते अब तो खुदको ही भूल गए है जिम्मेदारी की वसूल जो बड़े है बस मायूसी की आदत है हम खुद है या तारीखों का कागज है सर उठा कर बात करने का वक्त नहीं भूल गए हम खुद को कहीं बस जिंदगी के दिन जी रहे है सबूत को छोड़ कर चिथड़े सी रहे है। अजनबी हो गया हूं बस चल रहा हूं न जाने कैसे कट जायेगी ऐसे वैसे। ©rashmi98 #NojotoEnglish #nojohindi #NojotoEnglishPoetry #nojotohindipoetry #Nojotocreation #nojotocreator #nojoyopoetry #nojotokavishala