पाट ना पाया मीठा पानी ओर-छोर की दूरी रे मन कस्तूरी रे, जग दस्तूरी रे बात हुई ना पूरी रे खोजे अपनी गंध ना पावे चादर का पैबंद ना पावे बिखरे-बिखरे छंद सा टहले दोहों में ये बंध ना पावे नाचे हो के फिरकी लट्टू खोजे अपनी धूरी रे मन कस्तूरी रे #Man kasturi re#masaan#nashik .