जो होता है वह दिखता नहीं, जो दिखता है वह होता नहीं, दूर गगन में लहराता हर एक पंछी आजाद नहीं होता, इसी तरह आईने में देखा हर चेहरा साफ नहीं होता। आदमी का मन एक छल की तरह है, उसे जितना भी समझने की कोशिश करो, लेकिन उसके विचार हमेंशा ही, हमारी समझ के परे ही निकलते हैं। आँखों पर हमारी एक पट्टी बंधी होती है, जो कर लेते हैं विश्वास दूसरों पर, लेकिन हम जिसे अपना साथी मानते हैं, वही हमारा दुश्मन निकलता है। आदमी का किरदार, उसकी छवि से नहीं परख सकते हम, उसके लिए उसके दिल में झांकना पड़ता है, इसीलिए लिए तो कहते हैं ना कि, जो दिखता है वह होता नहीं और, जो होता है वह दिखता नहीं। -Nitesh Prajapati आईने में दिखा हर चेहरा साफ नहीं होता, उड़ता हुआ हर पंछी आजाद नहीं होता। पहली रचना की तारीख :- 14th March 2021 @@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ #collabwithकोराकाग़ज़ #सफ़रनामा1 #कोराकाग़ज़सफ़रनामा