घर से निकल कर घर को लौट आता हूँ, घर से निकल कर घर लौट आता हूँ न जानें मैं, हर रोज़ क्यों? चौख़ट पार निकल जाता हूँ हाँ, पापी पेट के लिए दो बख़त की रोटी जुटाता हूँ इसलिए घर ए दहलीज़ से बाहर जाता हूँ चंद कौड़ियों के लिए बनिए का बोझा उठाता हूँ घर के मेरे भगवान खुश रहें इसी कारण मै मिलों दूर जाता हूँ शाम को लौटते वक्त लिफ़ाफ़ों में किसी चेहरे की मुस्कुराहट बंद कर के ले आता हूँ घर से निकल कर रोज़ घर लौट आता हूँ ब्रजेश कुमार...✍ ०९/०७/२०१९ ०८:४५ पूर्वा: घर से निकल कर घर लौट आता हूँ न जानें मैं, हर रोज़ क्यों? चौख़ट पार निकल जाता हूँ हाँ, पापी पेट के लिए दो बख़त की रोटी जुटाता हूँ