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अब और कहां तक जाओगे चले भी आओ, ये वक्त फिसल रहा है

अब और कहां तक जाओगे चले भी आओ,
ये वक्त फिसल रहा है हाथ से रेत की तरह।

और कबतक रोक पाउंगा इसे मुझे नहीं पता,
तुम आकर कुछ सहारा दो तो कोई बात बने।।

©Sheel Sahab
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 कवि आलोक मिश्र "दीपक" vimlesh Gautam https://youtube.com/@jindgikafasana6684 Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय" Mr Laxmi Narayan Roy(Laxman) Abhisshek Writes❤️