#OpenPoetry स्कूल की याद आज भी आती है , जब बच्चो को स्कूल जाते देख थकान मिट जाती हे। एक पल को वक़्त के साथ थम सा जाता हूँ, बचपन की गलियों में फिर लौट आता हूँ। वो गलियाँ पुरानी वो खेल पुराने, वो दोस्ती की महफ़िल वो खुफिया ठिकाने। स्कूल जाने की जल्दी वो लंच का इंतज़ार, वो पहली दोस्ती और फिर पहला प्यार। वो गुड मॉर्निंग का गाना और टीचर का मज़ाक उड़ाना, फिर क्लास से बहार निकले जाने के बाद दोस्तों के साथ हसना हसाना। वो दोस्तों के साथ पिकनिक वो बस का सफर, वो यादो की बारिश और मस्ती का घर। वो पेनफाइट की गेम वो नोटबुक का बल्ला, वो कागज़ की गेंदे और जीत का हल्ला। वो वाशरूम के बहाने आधा लेक्चर बहार बिताना और उसी वाशरूम की दीवारों पे अपने प्यार को जाताना, वो दिल खोल के दोस्तों का लंच खाना और फ्री पीरियड के नाम पे ख़ुशी से चिलाना। वो क्लास बंक का अपना ही मज़ा था, वो क्रश का बोलना भैया अपने आप में ही सजा था। वो छुट्टी की घण्टी हमारे सोये दिमाग को जागती थी, वो बोरिंग से लेक्चर से बचने की ख़ुशी सीधा चेहरो पे छलक जाती थी। वो शाम को पार्क में क्रिकेट और फुटबॉल, हारते हुए गेम में दोस्तों के साथ किए हुए झोल। टूशन का भी अपना अलग ही स्वैग था , ओर क्या बतायें हमसे तो भारी हमारा स्कूल बैग था। आज उसी बैग का वजन कुछ कम सा लगता है , कयूंकि आज वही बच्चा सुबह स्कूल के लिए नही जिम्मेदारियों के लिए जगता है। आंखे नाम हो जाती है आज भी उन गलियों में जाने के बाद , मानो आंसू भी दगा दे जाते है जब करता हूँ बचपन को याद। सोच कर उन लम्हो को मनो रुह भी सुकून से टकरा जाती है , फिर से वही बचपन जीने का मन होता है जब उन गलियों की याद आती है। #OpenPoetry बचपन की गलियाँ, वो स्कूल की यादें