भारतीय राजनीति में चुनाव के समय दलबदल एक सामान्य सी बात हो गई है जब नकारात्मकता छवि वाले मंत्री या विधायक का पार्टी टिकट कट जाता है तब नेता 5 साल सत्ता की मलाई चाटने के बाद सुविधा अनुसार दूसरी राजनीतिक पार्टी से हाथ मिलाते हैं इसके बाद सत्ताधारी दल की रैली रटाई भाषा में दलित पिछड़े किसान आदि का विरोध बदला कर तुरंत प्रभाव से कौन जीत जाता है वोट की खातिर जाति का आधार आधारित राजनीति शुरू कर दी जाती है ऐसे नेताओं में नैतिक का अभाव होता है क्योंकि उन्हें देश समाज से कोई लेना देना नहीं होता बस उनका परम देहरे राजनीतिक चोर राहत और स्वास्थ्य सिद्ध होता है क्या ऐसे स्थित एक अतिथि मौसम नेताओं से जनता से जुड़ाव और कल जन कल्याण के कार्य की अपेक्षा की जा सकती है जो अपने और अपने बच्चों के लिए टिकट ना मिलने पर अपनी पार्टी छोड़कर बेइज्जत दूसरी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लेते हैं चाहे पार्टी की वैचारिक सामान्यता ना हो या ना हो ऐसे मौकापरस्त नेताओं का जनता द्वारा चुनाव में बहिष्कार किया जाना चाहिए ऐसे नेताओं को भी पति का लोटा कहा जाए तो आदर्श व्यक्ति नहीं होगी ©Ek villain # मौसमी नेताओं से बचें #Love