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कहीं बहक ना जाऊँ ,बदलते जमाने की रोशनी मे, इसलिए

कहीं बहक ना जाऊँ  ,बदलते जमाने की रोशनी मे,
इसलिए  कुछ चीज से परहेज़ किया है,।
कुछ ऐसा ना कह दूँ कि कोई अपना रूठ जाए ,
इसलिए मैने आजकल होठों को सिला है,
इस पर भी लोग ,"तू बदल गया है"ताना दे रहे, 
मै समझ ना पाया,ये मुझसे कैसा गिला है ?
मैं फिर भी खुश हूँ, दोस्तों, और संतोष कर लिया,  
जो मिला है आजतक बस ठीक मिला है ।
पुष्पेन्द्र पंकज

©Pushpendra Pankaj
  #lonelynight संतोषी सदा सुखी

#lonelynight संतोषी सदा सुखी #कविता

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