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ज़ख़्म देने वाला भी क्या,कमाल की अदाकारी निभाता है..

ज़ख़्म देने वाला भी क्या,कमाल की अदाकारी निभाता है..!
ख़ुद ही घोंपता है खँजर और,ख़ुद को ही सहकारी बताता है..!

क्या है क्यों है ये न जाने,आख़िर क्या चाहता है..!
मुखौटे पहने कई तरह के,नकली चेहरा दिखाता है..!

कर लेते हैं यकीन आँख बंद कर कैसे,सबक मुफ़्त में कहाँ सिखाता है..!
कीमत चुकानी पड़ती है तब जाकर,ज़ख़्मों संग जीना आता है..!

अपनों के बनाये चक्रव्यूह में,बुद्धि कैसे हर जाता है..!
अकेलेपन का शिकार कभी,तन्हाई से डर जाता है..!

हँसते खिलखिलाते जीवन को,आँसुओं से भर जाता है..!
स्वार्थ का दीमक धीरे धीरे,जीवन नष्ट कर जाता है..!

रिश्तों का रख वाला होता जो कभी,भ्रष्ट होकर यूँ ही मर जाता है..!
अपना नहीं कोई इस जहाँ में,ये ख़्याल मन में घर कर जाता है..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #Hum #Adakari