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है विद्या गुरु तुम्हे नमन तुम उज्ज्वल हो, तुम हो ज

है विद्या गुरु तुम्हे नमन
तुम उज्ज्वल हो, तुम हो ज्ञायक
तुम आधार हो,तुम हो साधक
जैन धर्म की गरिमा तुम हो।
गा न सके जिसे वो महिमा तुम हो।।
शिष्य तुम्हारे सूर्य से चमकते।
मेरे गुरुवर उनका तेज उनकी चर्या तुम हो।।
रत्नत्र्य से तुम बनकर बैठे,
मोती दिए बिखरा चारो ओर।
एक एक मोती ज्ञान से भरे,
साधना से बंधी जैसे पक्की डोर।
उंगली पकड़ी फिर चला दिया।
हम जैसे पुण्यहीनों को 
गुरुवर मुनियों के दर्श देकर तार दिया।।
जीवन छड़ भंगुर है,
धर्म की पतवार देकर समझा दिया।
फंसे थे बीच भंवर में,
भक्त की पुकार पर जैसे भगवान ने अवतार लिया।
हुआ रोशन ये जग सारा,
जब चमका धरती पर एक ध्रुव तारा।
शरद पूर्णिमा पर चंदा ने गुरु दर्श पाने ,
जैसे खुदको धरती पर उतारा।।
दर्श सदा ही मिलते रहे गुरुवर ।
तुम एक मात्र हम डूबो का सहारा।
गहरी है राग द्वेष की नदी ।
गुरुवर बस हो तुम ही एक सहारा।।
नमन नमन नमन हो गुरुवर स्वीकार हमारा...........
मिलता रहे आशीष सदा आपका 
आपका जन्मदिवस है,जैसे है उपकार हम पर आपका।।।।।।।।

©chahat
  जैन धर्म की गरिमा तुम
shilpijain8470

chahat

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जैन धर्म की गरिमा तुम #Shayari

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