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सफ़र ख़त्म नही हुआ और मैं चलता रहा धीरे-धीरे, धूप

सफ़र  ख़त्म नही हुआ  और मैं चलता रहा धीरे-धीरे,
धूप ज़िंदगी की निकली मग़र मैं ढलता रहा धीरे-धीरे।

मेरी  बर्बादियों का  अंदाज़ा तो  मेरी सूरत से न होगा,
मैं इक बुझा हुआ चिराग़ था जो जलता रहा धीरे-धीरे।

मेरे  क़दमो  के निशां बयाबां   में ढूंढ़ने  वालों से पूछो,
कांटो में  भी रहकर दिल मेरा  मचलता रहा धीरे-धीरे।

और   एक  शख्स  जो बचपन  से मेरा अंदर  रहता है,
'अंजान' ख़्वाहिशों में भी दबकर पलता रहा धीरे-धीरे। ♥️ Challenge-977 #collabwithकोराकाग़ज़

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊

♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
सफ़र  ख़त्म नही हुआ  और मैं चलता रहा धीरे-धीरे,
धूप ज़िंदगी की निकली मग़र मैं ढलता रहा धीरे-धीरे।

मेरी  बर्बादियों का  अंदाज़ा तो  मेरी सूरत से न होगा,
मैं इक बुझा हुआ चिराग़ था जो जलता रहा धीरे-धीरे।

मेरे  क़दमो  के निशां बयाबां   में ढूंढ़ने  वालों से पूछो,
कांटो में  भी रहकर दिल मेरा  मचलता रहा धीरे-धीरे।

और   एक  शख्स  जो बचपन  से मेरा अंदर  रहता है,
'अंजान' ख़्वाहिशों में भी दबकर पलता रहा धीरे-धीरे। ♥️ Challenge-977 #collabwithकोराकाग़ज़

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