मुझको बांटे ना कभी ऐसी जगह चाहिये मुझे मक्का भी नहीं ना मथुरा चाहिये कैसे कह दूँ कि मुझे वो ना चाहिये के भगवान नहीं मुझको ना ख़ुदा चाहिये मुझे मिल जाये या रब तू और क्या चाहिये जन्नत भी नहीं मुझको ना दुनिया चाहिये तेरी राहों में मुझे वो सिलसिला चाहिये दर्द भी ना हो मुझे नाहीं दवा चाहिये चलने को सहज एक रास्ता चाहिये तन्हा भी नहीं मुझको ना कारवां चाहिये ...... चाहिये 💛