नये समय का आगाज सीने में कुछ करने की ; लगा आग रही है सोई उम्मीदें एक बार फिर से जाग रही है भाग रही है हार ;जीत के डर से मैदान छोड़ कोशीशे कर नये समय का आगाज रही है कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद नये समय का आगाज...... कीर्तिप्रद