नव-निर्माण हेतू वह पत्थर उठाती सर पर रोके रुके न किसी बाधा के रोक पर सारे भार को हृदय में रोक की तनिक भी क्षति न पहुँचे कोख पर सूरज ने अपना ताप समेटा किन्तु बादल के छोर तक पेड़ो ने छाया समर्पित की किन्तु साख के मोड़ तक माँ तो वरदान देती हैं कौन श्राप ले उपहार अवरोध कर? कि तनिक भी क्षति न पहुँचे कोख पर रोटी जोड़ती एक-एक पत्थर जोड़कर स्वयं की भूख भुलाकर रोटी खाती कोख के लिए संतान को सुरक्षित रखती साहस निचोड़कर उसको देख दर्द भी छिप जाए ओट कर कि तनिक भी क्षति न पहुँचे कोख पर। #newtown ki galiyon me 27jan20 ko likhi ek kavita #letter