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तुम अगर रुकते तो मोहब्बत मेरी भी क़ामिल होती, निहाँ

तुम अगर रुकते तो मोहब्बत मेरी भी क़ामिल होती,
निहाँ न होती ज़माने से तेरे दिल में ग़र शामिल होती।

तुमसे बयाँ क्या करतें तेरी नज़र तक में न आ सकें,
हस्ती कुछ और होती मेरे हिस्से जो मुहब्बत तेरी दाखिल होती।

मुझको न दरकार थी सनम हीरे जवाहरातों की,
कोहिनूर सा नूर होता मुझे चाहत तेरी जो हासिल होती।

न पलट के मैं ढूँढती तेरे क़दमों के निशां बार बार,
मेरी वफ़ा भी तुझ जैसी महरूम और ग़ाफ़िल होती।

हम तो वहीं रुके रह गए जहाँ तुम ठहर भी न सके,
तुम थोड़ा रुकते तो क्या ख़ूब ही फ़िर महफ़िल होती। ♥️ Challenge-814 #collabwithकोराकाग़ज़ 

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

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♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।
तुम अगर रुकते तो मोहब्बत मेरी भी क़ामिल होती,
निहाँ न होती ज़माने से तेरे दिल में ग़र शामिल होती।

तुमसे बयाँ क्या करतें तेरी नज़र तक में न आ सकें,
हस्ती कुछ और होती मेरे हिस्से जो मुहब्बत तेरी दाखिल होती।

मुझको न दरकार थी सनम हीरे जवाहरातों की,
कोहिनूर सा नूर होता मुझे चाहत तेरी जो हासिल होती।

न पलट के मैं ढूँढती तेरे क़दमों के निशां बार बार,
मेरी वफ़ा भी तुझ जैसी महरूम और ग़ाफ़िल होती।

हम तो वहीं रुके रह गए जहाँ तुम ठहर भी न सके,
तुम थोड़ा रुकते तो क्या ख़ूब ही फ़िर महफ़िल होती। ♥️ Challenge-814 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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nazarbiswas3269

Nazar Biswas

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