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उमड़ उमड़ जो भीतर रह रह जो स्वास शेष रहता यह तो नि

उमड़ उमड़ जो
भीतर रह रह जो
स्वास शेष रहता
यह तो निश्चिं है
कि जीवन शेष है, 
किंतु मोल हुए जो
भावना बिके जो
फिर क्या रहता
मन में अंतर है
व्योम में छल है, 
बना संजोग जो
मिलन का जो
एक रहस्य रहता
प्रीत किसे कहाँ है
बस अपना काज है,

©Kavitri mantasha sultanpuri #शेष
#KavitriMantashaSultanpuri
उमड़ उमड़ जो
भीतर रह रह जो
स्वास शेष रहता
यह तो निश्चिं है
कि जीवन शेष है, 
किंतु मोल हुए जो
भावना बिके जो
फिर क्या रहता
मन में अंतर है
व्योम में छल है, 
बना संजोग जो
मिलन का जो
एक रहस्य रहता
प्रीत किसे कहाँ है
बस अपना काज है,

©Kavitri mantasha sultanpuri #शेष
#KavitriMantashaSultanpuri