उमड़ उमड़ जो भीतर रह रह जो स्वास शेष रहता यह तो निश्चिं है कि जीवन शेष है, किंतु मोल हुए जो भावना बिके जो फिर क्या रहता मन में अंतर है व्योम में छल है, बना संजोग जो मिलन का जो एक रहस्य रहता प्रीत किसे कहाँ है बस अपना काज है, ©Kavitri mantasha sultanpuri #शेष #KavitriMantashaSultanpuri