हाल बयां कर रहा है ये कुदरत खेल जो उसके साथ खेले है शक्ल-सूरत बिगाड़ी है ना उसकी तैयार हो जाओ अब बारी उसकी है शक्ल क्या नश्ल भी बिगड़ जाएगी जब पलटवार उसका होगा एक बूंद नीर के लिए भी तरसेगा तू इंसान जिस माटी की बिसात जो बिगाड़ी है तूने अब औकात तेरी मिट जाएगी तू अगर चाहता है कि तेरा वज़ूद बना रहे सवांर दे इस धरती को उसके गहनों से लौटा दे वही खुसबू इस चमन की और इस माँ का कर्ज उतार दे मय सुत फिर देख खुशियां-आनंद सिमटे नहीं सिमटेगा ©Lyricist Gopal Boyal प्रकृति का इन्तेक़ाम