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बेशर्त दोस्ती तुम जो होती तो, मैं गाँव का जोहड़ ह

बेशर्त दोस्ती तुम जो होती तो, 
मैं गाँव का जोहड़ होता, 
खेतों में चने का खार, 
सावन और भी होता सुहाना, 
मैं दौड़ पाता पगडंडीयों पर
तुम जो होती तो, 
मैं बादल होता,
बरसता बंजर खेतों में,
बिखेरता रंग प्यार के, 
लगाता गुलाल नर्म गालों पर
तुम जो होती तो,
सरपट दौड़ता गलीयों में,
गुनगुनाता प्यार के नग्में, 
ताकता दरिचों से हरियाली,
देखता मैं भी हसीं ख्वाब़
तुम जो होती तो, 
लड़ता मैं भी नाउम्मीदी से, 
बारिशों में भीगता भी, 
हवाओं से शर्त भी लगाता, 
बुनता इक आसियाना
तुम जो होती तो, 
पर जब तुम हो ही नहीं 
तो किस से कहूं कि
मैं  सूख चुका हूँ 
मुझे नमीं चाहिए
तुम जो होती तो, 
छिपकर रोता तुम्हारी जुल्फों में,
बच्चों सा लिपट जाता तुमसे,
तुम्हारे दुपट्टे से पोंछता आँसू,
फिर खिलखिलाकर हँसता
तुम जो होती तो, 
पर जब तुम हो ही नहीं 
तो क्या कहें 
कहते  तुम जो होती तो।। 

                                        ----- मोहित कुमार मोहित कुमार
बेशर्त दोस्ती तुम जो होती तो, 
मैं गाँव का जोहड़ होता, 
खेतों में चने का खार, 
सावन और भी होता सुहाना, 
मैं दौड़ पाता पगडंडीयों पर
तुम जो होती तो, 
मैं बादल होता,
बरसता बंजर खेतों में,
बिखेरता रंग प्यार के, 
लगाता गुलाल नर्म गालों पर
तुम जो होती तो,
सरपट दौड़ता गलीयों में,
गुनगुनाता प्यार के नग्में, 
ताकता दरिचों से हरियाली,
देखता मैं भी हसीं ख्वाब़
तुम जो होती तो, 
लड़ता मैं भी नाउम्मीदी से, 
बारिशों में भीगता भी, 
हवाओं से शर्त भी लगाता, 
बुनता इक आसियाना
तुम जो होती तो, 
पर जब तुम हो ही नहीं 
तो किस से कहूं कि
मैं  सूख चुका हूँ 
मुझे नमीं चाहिए
तुम जो होती तो, 
छिपकर रोता तुम्हारी जुल्फों में,
बच्चों सा लिपट जाता तुमसे,
तुम्हारे दुपट्टे से पोंछता आँसू,
फिर खिलखिलाकर हँसता
तुम जो होती तो, 
पर जब तुम हो ही नहीं 
तो क्या कहें 
कहते  तुम जो होती तो।। 

                                        ----- मोहित कुमार मोहित कुमार