चुप चुप सी रहने लगी हूं मैं खोई खोई सी रहने लगी हूं मैं कैसा अकेलापन है ये जिसमें धीरे धीरे डूबने लगी हूं मैं । पहले तो ऐसे नहीं थी मैं हमेशा ख़ुश रहा करती थी मैं मुश्किलें तो पहले भी बहुत थीं पर तब उनसे लड़कर जीतना जानती थी मैं। सबके अंदर से अच्छाईयां छान रही हूं मैं सबको अपना भी मान रही हूं मैं पर कभी किसी को अपनी आदत ना बनाऊं यह भी आज ठान रही हूं मैं । ज़िंदगी के नए नए राज़ जान रही हूं मैं धीरे धीरे दुनिया को पहचान रही हूं मैं क्या अतरंगी जहां बनाया है ए खुदा!तेरी कलाकारी का गान गा रही हूं मैं।। _प्रज्ञा चन्द्र #nojotohindi(originals)