काम वैसे तो अंजाम देना हैं बहोत जब वक्त को देखा तो काम हैं बहोत यूँ ही बिस्तर पर पडे पडे सोच रहा हूँ मुझ को आगे बढ़ना हैं बहोत छूटता ही नहीं ये नशा कैसा है मैंने कोशिश बहोत कि लेकिन कोशिश करना अब भी हैं बहोत तिरी निगाहों से अब इक पल भी आराम नहीं है शायद मेरे लिए इनमे तड़प हैं बहोत कुछ कर गुजर जाने का नाम ही है शायद जिंदगी वर्ना इसमें जीते तो कम हैं लोग मरते हैं बहोत किसीका का मिलना फिर बिछड़ना और याद आना यार "सौरभ" रिश्ते कमबख्त मज़ाक हैं बहोत ©Saurabh Bhorjare #Kabkhat #rishte #work #Zindagi #marna #jeena #Log #bistar #alsiii