जिसे तुम्हारी जरूरत ना हो फिर भी जो तुमसे रिश्ता निभाए, ऐसा रिश्ता किसी खुशनसीब को ही मिलता है वरना आजकल हर रिश्ता तो जरूरतो से बनता है शायद ऐसा ही अद्भुत रिश्ता मेरा तुमसे बनता है जरूरतो से परे ख्वाइशों का मेला लगता है यूं ही नहीं कोई किसी की परवाह करता यूं ही नहीं कोई मिलने की दुआ करता मिलो की दूरियों में भी ,दिल की नज़दीकियां प्यार कोई खुद से ज्यादा, तुमसे यूं ही नहीं करता चाहत हो जाती है अपनों के साथ जीने की वरना पता तो सभी को होता है कि साथ कोई नहीं जाता फिर ख्वाहिशों का कोई अफसाना न होता यदि ऐसा खुशनसीब यह रिश्ता हमारा ना होता हम जो तुमसे मिले हैं इत्तेफाक थोड़ी ना है मिलकर तुमको छोड़ दे मजाक थोड़ी ना है ऐसी भी क्या दूरियां ह जो मिलने के काबिल नहीं इतने वक्त से मिले नहीं क्या इतनी सजा काफी नहीं नहीं है किस्मत में मिलना तो मिलना जरूरी तो नहीं जो बिन मुलाकातों के रिश्ते निभाए ऐसा खुशनसीब रिश्ता हमारा है यह एहसास कम तो नहीं Naresh panghal लिखे यह एहसास,कलम जैसा कोई रिश्ता नहीं और ऐसा रिश्ता किसी खुशनसीब को ही मिलता है खुशनसीब रिश्ता