23. नफरत माना जुल्फें टेढ़ी मेढ़ी और घुघंराली है, फिर भी न करो तुम नफरत. माना चेहरे पर एक मासूम तिल है, फिर भी न करो तुम नफरत. माना कानों में झूमके कम शर्मीले है, फिर भी न करो तुम नफरत. माना होठों पर नशीली मुस्कान ज्यादा है, फिर भी न करो तुम नफरत. माना चाल में अदा गायब है, फिर भी न करो तुम नफरत. माना आवाज में सुर नासाज है, फिर भी न करो तुम नफरत. माना तुमसे प्यार जताता कम है, फिर भी न करो तुम नफरत. माना सबके सामने हाथ पकड़ता नहीं है, फिर भी न करो तुम नफरत. माना नजरें मिलाने से हिचकता है, फिर भी न करो तुम नफरत. माना वो बातें और दिन भूल जाता है, फिर भी न करो तुम नफरत. वो सिर्फ तुम्हारा है, तुम्हारा ही रहेगा, अब कभी न करो नफरत. ©Ankit verma utkarsh❤ collection:- ठंडी धूप 23rd poetry #hugday PUSHPA Mohammad ABID Muskan Sooch goluchaudhari Amit