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हसरत-ए-हुस्न की ग़ज़लें आज भी लिखता हूं , कलम उठी तो

हसरत-ए-हुस्न की ग़ज़लें आज भी लिखता हूं ,
कलम उठी तो गुलज़ार लिखता हूँ ,
मोहब्बत के बाजार मे लब्जो से आज भी बिकता हूँ ,
उनकी नज़रे परदे में रहती है ,
उस परदे के पीछे के राज़ आज भी लिखता हूँ।
                             #pk 👱‍♀️ हसरत-ए-हुस्न
हसरत-ए-हुस्न की ग़ज़लें आज भी लिखता हूं ,
कलम उठी तो गुलज़ार लिखता हूँ ,
मोहब्बत के बाजार मे लब्जो से आज भी बिकता हूँ ,
उनकी नज़रे परदे में रहती है ,
उस परदे के पीछे के राज़ आज भी लिखता हूँ।
                             #pk 👱‍♀️ हसरत-ए-हुस्न