जैसे भी हो इस कर्बे मुसल्सल से निकालो|| में नील कमल हूँ मुझे दलदल से निकालो..! हीरा ही सही नस्ल तो पथ्थर है हमारी|| कंकड़ की तरह हमको भी चावल से निकालो..! तुम मेरी फ़क़ीरी को कहाँ लेके चले आये|| मे टाट का पैबंद हूँ मख़मल से निकालो..! ये झूठ हकूमत को निगल सकता है साहेब|| ठिठुरी हुई इस लाश को कम्बल से निकालो..!