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Title: "परीक्षा" (An untold Story of Student Life

Title: "परीक्षा" (An untold Story of Student Life ) 

क्यू दु मैं ये परीक्षा,  जहां चलती न हो मेरी कोई ईक्षा!

क्यू मैं पढु रात-रात जाग कर, जब सब सो रहे हो चादर तान कर!

क्यू मैं जागु सुबह कुत्तो से भी पहले, जब सूरज भी ना जागा हो जो सोया था मुझसे पहले!

क्यू मैं सुनूं उनलोगो के ताने, जो खुद न कर पाए तो बनते हो बहाने!

क्यू मैं बताऊं उनलोगो को क्या चल रहा है आज कल,  बस मुस्करा के खुद को बोल देता हूं कि नाकामयाबी है ये असर!

क्यू मैं चलूं यू ही सुनसान सड़को पर, जब छोटे बच्चे भी घूम रहे हो फेजर जैसी बाइक पर!

क्यू इन हालातों से मेरा रिश्ता पुराना है, पर करु मैं भी तो क्या, ये हालात मेरा ही तो दीवाना है!

क्यू मैं करू हार्ड वर्क , जब सब टीका हो भाग्य पर!

क्यू दु मैं ये परीक्षा, जहा चलती न हो मेरी कोई ईक्षा!

Poetry By - गौरव मंदिलवार

©Gaurav Mandilwar
  Pariksha ( An untold Story of Student Life)

Pariksha ( An untold Story of Student Life) #ज़िन्दगी

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