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बचा लिया है रावण ख़ुद में,उम्मीद है कही कोई राम मुझ

बचा लिया है रावण ख़ुद में,उम्मीद है कही कोई राम मुझको भी मिल जाये,उठा के तीर चला दे मेरे अहंकार के दस सरों पे,रुखसती बुराईयों से मुझे भी मिल जाये.
पहला तीर चलाये मेरी आँखों में,जो देखती है हुस्न में हवस,करती है अपमान हर नारी का. दूसरा चलाये मेरी जुबां पे जो बोलती है नफ़रत घोलती है ज़हर ज़माने में पाने को शोहरत.
तीसरा तीर चलाये मेरी आवारगी पे,मोहब्बत से हुई नाराज़गी पे,सीखा दे मुझको भी मीरा सा विशवास राधा सा प्यार.
चौथा तीर चलाये मेरे लालच पे,दौलत पाने को अंधी हुई इंसानियत से बग़ावत पे,लूट रहा जो पैसो के लिए ग़रीब की जान लालची साहूकार ,चला दे छाती पे तीर इस रावण के.
पांचवा तीर चलादे झूठी ईबादत पे,धर्म के नाम पे होती मासूम जानवरों की शहादत पे. बता दे वो तीर इन मूर्खों को,बलि से नहीं बल से नही धन से नही  भगवान तो खुश होता इंसान के ख़ुद में ही ख़ुद को पाने से.ना मिलती जन्नत मज़हब के नाम पे घर जलाने से ना मिलता स्वर्ग गंगा में चेहरा डुबाने से.
छठा तीर चलाये लक्ष्मण उन शैतानों पे,लूट ते है जो अस्मत मासूम बच्चीयों की,नोचते है जो अबला नारियों को, मजबूर करते है जो नारी को बिकने पे, खींच दे लक्ष्मण रेखा छाती पे ऐसे व्यापारियों के हैवानियत के पुजारियों पे.
सातवां तीर चलाये उन नग्न मूरतों पे,फैशन के नाम पे बिकती सूरतों पे,असल रूप छोड़ जो दिखावे का चेहरा पहने है,समझा दे उनको भी शिंगार हया ही नारी के गहने है.एक रिश्ते के होते भी जो कई रिश्ते बनावे है कैसे वो सुहागन पतिव्रता कहलावे है मर्द भी चूमे है जो हर नारी की चौखट वो मर्द कम अय्याश ही कहलावे है सातवां तीर राम फिर ऐसे मानुस पे ही चलावे है.
आठवां तीर उठा के किस्सा सरहदों का मिटा दे,सतयुग की गंगा फिर से चला दे,उठा ले गया था रावण जो सीता को,वैसा रावण आज के हैवान में भी जगा दे,छुया ना जिसने नारी को उसकी इच्छा के बिना ऐसा ज्ञान आज के रावण को भी वो ज्ञानी सीखा दे.continue....
बाकी नीचे mention में full post पढ़िए
⬇️ (काश कोई राम मुझ को भी मिले)

बचा लिया है रावण ख़ुद में,उम्मीद है कही कोई राम मुझको भी मिल जाये,उठा के तीर चला दे मेरे अहंकार के दस सरों पे,रुखसती बुराईयों से मुझे भी मिल जाये.
पहला तीर चलाये मेरी आँखों में,जो देखती है हुस्न में हवस,करती है अपमान हर नारी का.जो करती है इशारे पकड़ बेशर्मी की राहें. 

दूसरा चलाये मेरी जुबां पे,जो अब बोलती है नफ़रत,घोलती है ज़हर ज़माने में पाने को शोहरत.मिठास की शक्कर लिए जो नमक का करती कारोबार,बड़े छोटे की ना कदर जिसे ना करती ये अब किसी का जी सतिकार.बोलती है कड़वे बोल बन
बचा लिया है रावण ख़ुद में,उम्मीद है कही कोई राम मुझको भी मिल जाये,उठा के तीर चला दे मेरे अहंकार के दस सरों पे,रुखसती बुराईयों से मुझे भी मिल जाये.
पहला तीर चलाये मेरी आँखों में,जो देखती है हुस्न में हवस,करती है अपमान हर नारी का. दूसरा चलाये मेरी जुबां पे जो बोलती है नफ़रत घोलती है ज़हर ज़माने में पाने को शोहरत.
तीसरा तीर चलाये मेरी आवारगी पे,मोहब्बत से हुई नाराज़गी पे,सीखा दे मुझको भी मीरा सा विशवास राधा सा प्यार.
चौथा तीर चलाये मेरे लालच पे,दौलत पाने को अंधी हुई इंसानियत से बग़ावत पे,लूट रहा जो पैसो के लिए ग़रीब की जान लालची साहूकार ,चला दे छाती पे तीर इस रावण के.
पांचवा तीर चलादे झूठी ईबादत पे,धर्म के नाम पे होती मासूम जानवरों की शहादत पे. बता दे वो तीर इन मूर्खों को,बलि से नहीं बल से नही धन से नही  भगवान तो खुश होता इंसान के ख़ुद में ही ख़ुद को पाने से.ना मिलती जन्नत मज़हब के नाम पे घर जलाने से ना मिलता स्वर्ग गंगा में चेहरा डुबाने से.
छठा तीर चलाये लक्ष्मण उन शैतानों पे,लूट ते है जो अस्मत मासूम बच्चीयों की,नोचते है जो अबला नारियों को, मजबूर करते है जो नारी को बिकने पे, खींच दे लक्ष्मण रेखा छाती पे ऐसे व्यापारियों के हैवानियत के पुजारियों पे.
सातवां तीर चलाये उन नग्न मूरतों पे,फैशन के नाम पे बिकती सूरतों पे,असल रूप छोड़ जो दिखावे का चेहरा पहने है,समझा दे उनको भी शिंगार हया ही नारी के गहने है.एक रिश्ते के होते भी जो कई रिश्ते बनावे है कैसे वो सुहागन पतिव्रता कहलावे है मर्द भी चूमे है जो हर नारी की चौखट वो मर्द कम अय्याश ही कहलावे है सातवां तीर राम फिर ऐसे मानुस पे ही चलावे है.
आठवां तीर उठा के किस्सा सरहदों का मिटा दे,सतयुग की गंगा फिर से चला दे,उठा ले गया था रावण जो सीता को,वैसा रावण आज के हैवान में भी जगा दे,छुया ना जिसने नारी को उसकी इच्छा के बिना ऐसा ज्ञान आज के रावण को भी वो ज्ञानी सीखा दे.continue....
बाकी नीचे mention में full post पढ़िए
⬇️ (काश कोई राम मुझ को भी मिले)

बचा लिया है रावण ख़ुद में,उम्मीद है कही कोई राम मुझको भी मिल जाये,उठा के तीर चला दे मेरे अहंकार के दस सरों पे,रुखसती बुराईयों से मुझे भी मिल जाये.
पहला तीर चलाये मेरी आँखों में,जो देखती है हुस्न में हवस,करती है अपमान हर नारी का.जो करती है इशारे पकड़ बेशर्मी की राहें. 

दूसरा चलाये मेरी जुबां पे,जो अब बोलती है नफ़रत,घोलती है ज़हर ज़माने में पाने को शोहरत.मिठास की शक्कर लिए जो नमक का करती कारोबार,बड़े छोटे की ना कदर जिसे ना करती ये अब किसी का जी सतिकार.बोलती है कड़वे बोल बन
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