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होने को क्या नहीं होता ज़िंदगी में दोबारा, बस अब कि

होने को क्या नहीं होता ज़िंदगी में दोबारा,
बस अब किसी और से मोहब्बत नहीं हो पाएगी।

हर सुब्ह खोलते ही आंखें चेहरा-ए-अनवर देखना,
दोबारा किसी की इतनी बुरी आदत नहीं हो पाएगी।

इतने नश्तर बेवफ़ाई के चलाये हैं ज़ालिम ने दिल पर,
रूह फिर से मेरी सलामत नहीं हो पाएगी। #दोबारा
होने को क्या नहीं होता ज़िंदगी में दोबारा,
बस अब किसी और से मोहब्बत नहीं हो पाएगी।

हर सुब्ह खोलते ही आंखें चेहरा-ए-अनवर देखना,
दोबारा किसी की इतनी बुरी आदत नहीं हो पाएगी।

इतने नश्तर बेवफ़ाई के चलाये हैं ज़ालिम ने दिल पर,
रूह फिर से मेरी सलामत नहीं हो पाएगी। #दोबारा