जले सपनों की राख बटोर के मिट्टी में मिलाता हूँ मैं बीज एक नए ख्वाब के उस मिट्टी में फिर बोता हूं मैं ....मुझे अब भी उम्मीद है कभी तो लहलहाएगा ख़्वाबों के बीज से पनपा खूबसूरत हक़ीक़त का एक पेड़ जिसकी डाल पे चिड़ियाँ एक दिन फिर आके बैठेंगी बसंत उस दिन फिर लौट कर आएगा इसलिए जले ख़्वाबों की मिट्टी में फिर से नयी उम्मीद बोता हूँ मैं बसंत लौट कर फिर आएगा ये ख़्वाब अब भी देखता हूँ मैं musings - 12/9/18