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मुझमें मैं हूँ या नहीं भी कि हर चाह मेरी तेरे आबोह

 मुझमें मैं हूँ या नहीं भी कि हर चाह
मेरी तेरे आबोहवा से जगती है!
ये किसकी किस तरह इबादत है कि
मेहनत की रोटी दुआ सी लगती है!
तिरे सितम का बयां है जो गिरे कहीं
बिजली जुल्फ की हवा सी लगती है!
मिरे दर्द पर तो दर्द को भी रोना आया
मैख़ाने की नाचीज़ दवा सी लगती है!!
 मुझमें मैं हूँ या नहीं भी कि हर चाह
मेरी तेरे आबोहवा से जगती है!
ये किसकी किस तरह इबादत है कि
मेहनत की रोटी दुआ सी लगती है!
तिरे सितम का बयां है जो गिरे कहीं
बिजली जुल्फ की हवा सी लगती है!
मिरे दर्द पर तो दर्द को भी रोना आया
मैख़ाने की नाचीज़ दवा सी लगती है!!