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ख़ुद को कितना छोटा करना पड़ता है..  झूठों से समझौत

ख़ुद को कितना छोटा करना पड़ता है.. 
झूठों से समझौता करना पड़ता है..
सच्चाई को अपनाना आसान नहीं.. 
दुनियाभर के लोगों से किनारा करना पड़ता है.. 
जब सारे के सारे ही बे-पर्दा हों..
ऐसे में ख़ुद को पर्दा करना पड़ता है.. 
प्यासों की बस्ती में शोले भड़का कर..
फिर पानी को महँगा करना पड़ता है.. 
हँसकर अपने चेहरे की हर सिलवट को.. 
शीशे को शर्मिंदा करना पड़ता है...

©Rishi Ranjan  poetry on love hindi poetry on life hindi poetry poetry lovers metaphysical poetry
ख़ुद को कितना छोटा करना पड़ता है.. 
झूठों से समझौता करना पड़ता है..
सच्चाई को अपनाना आसान नहीं.. 
दुनियाभर के लोगों से किनारा करना पड़ता है.. 
जब सारे के सारे ही बे-पर्दा हों..
ऐसे में ख़ुद को पर्दा करना पड़ता है.. 
प्यासों की बस्ती में शोले भड़का कर..
फिर पानी को महँगा करना पड़ता है.. 
हँसकर अपने चेहरे की हर सिलवट को.. 
शीशे को शर्मिंदा करना पड़ता है...

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Rishi Ranjan

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