बाहर फैला उजियारा है मन मेरा क्या ढूंढ़ रहा जो शब्दों में ना हो पाए बयाँ मेरी दुआओं में उसको पढ़ा करो जैसे दीये-बाती का रिश्ता है मुझको भी वैसा बनना है कतरा-कतरा मैं जल जाऊँ मौला तुझमें ही फिर आ मिलना है चारों तरफ खुशियों का मौसम है हर तरफ झिलमिलाती खुशहाली है जो महरूम है तेरी मेहर से मौला झोली उनकी भरा करो मुँडेर पर दीपक जला दिया रोश्नी खिड़की से आती है मैं काम किसी के आ जाऊँ मौला वो ही ईद निराली है... © abhishek trehan ♥️ Challenge-568 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ आप सभी को ईद की बहुत-बहुत मुबारकबाद ♥️ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए।