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उगाणै रौ भाणु उगंता ,हंसती गेंहुआ सी बाळी। चम-चमकै

उगाणै रौ भाणु उगंता ,हंसती गेंहुआ सी बाळी।
चम-चमकै सुरम्य सुषमा, जैडी- रतनारा री लाळी।।
आंथुणा रौ वाजै वायरौ,,,,,,,,,,,,

भूत -भभूल्या करता तांडव,दै दै कर वै ताळी।
थारीं कसुमळ साडीं जैडौ, यौ मायड़ रौ परिधान।।
 थारै संतरगी लहरियां सी, यां ईं मुळ्क री पैचाण ।
आखिर राजस्थाण रंगीलौ,सुर- सुरीलौ मन हठीलौ ।।

ऐडौ म्हारौ राजस्थाण रंगीलौ, रूडौ म्हारौ राजस्थाण।।

गडीसीसर री बैठ पाळ पै गीत कुरंजा गावै,
सौनाणै रै टीला माथै याद मुमळ री आवै।
चम -चम करता मरुआं टीला चांदी णै शर्माता,
ऊंचौ हियौ लै आडावळ मंगरा देव रमण णै आतां।।

चार कौसा तै बदळै पाणी बीस कौसां ते वाणी ,
त्याग और बलिदाण मान री बदळै नाहिं कहाणी।
थारै कमरियां जैडौ लचकै ईंण रौ चम्बळ रौ पाणी ,
आखिर राजस्थाणै निरालौ शुरा -वीरां री फुलवारी।।

बांगा बौलै कोयलडियां री वाणी मन में भावै ,
प्रीतम री यादां तडफै गौरयां गीतडा गावै। 
देख चांदणी रोवै चकवा ऐ विरह री गाथा,
थै आवौ तौ करला साजण आपां हिया री बातां।।
रामु-चरणा मीरा मुमळ सब ऐ मरूधर री गाथा,
गौरबंधरां रा रैजा सतरंग गिरबाण पिया  री नथणी।।

मरवण थारै देस निराणौ ,,,,,,,,,, आखिर राजस्थाण निराळौ

©Ombhakat Mohan( kalam mewad ki)
  viren kumar kushwaha Rakesh Verma ...... ABRAR जादूगर