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पन्ने पर ग़ज़ल तो संवर जाएगी मगर उसमें तेरी कमी नज़र

 पन्ने पर ग़ज़ल तो संवर जाएगी
मगर उसमें तेरी कमी नज़र आएगी ।

मना लूँ केसे अब में खुदा को दोबारा
आखिर मेरी शख्यियत बिखर जाएगी।

जानकर नहीं गिनता में तारे रातों को जानता हूँ
तू फिर चाँद में निखर आएगी।
 पन्ने पर ग़ज़ल तो संवर जाएगी
मगर उसमें तेरी कमी नज़र आएगी ।

मना लूँ केसे अब में खुदा को दोबारा
आखिर मेरी शख्यियत बिखर जाएगी।

जानकर नहीं गिनता में तारे रातों को जानता हूँ
तू फिर चाँद में निखर आएगी।
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