"कौन सा स्कूल"-01 जीवन से बड़ा मायाजाल ब्रह्माण्ड में भी दूसरा क्या होगा। हर प्राणी भ्रम में जी रहा है और उसी को वास्तविकता मानकर जी रहा है। ‘मैं हूं’। क्या हूं ? कौन हूं ? नहीं मालूम। अभी कल के समाचार पत्रों में एक सर्वे रिपोर्ट छपी थी कि माता-पिता बेटों को निजी स्कूलों में अधिक भेजना चाहते हैं तथा बेटियों को अधिकांशत: सरकारी स्कूलों में भेजते हैं। यही सबसे बड़ा कारण है समाज की दुर्दशा का। 😊🌷#सुभसंध्या🌷😊 : मैं आपके साथ जानकारी साझा करता हूँ ताकि आप पढ़ सकें सामाजिक आध्यात्मिक भावनात्मक मनोविनोद आदि पेश है एक और विचारणीय बिंदु आपको कैसी लगी पढ़कर जरूर बताएं स्वागत है ....😊🌷😊😊🍹🙏🙏🙏🌷☕☕☕☕☕🌷😊😊🌷😊 : एक ओर सरकारी स्कूल के अध्यापक नई पीढी की बुद्धिमता एवं अनुशासन क्षेत्र में पिछडे दिखाई पड़ते हैं, वहीं निजी क्षेत्र के स्कूल पूर्ण रूप से व्यावसायिक सिद्ध हो रहे हैं। ट्यूशन, निजी लेखकों की पुस्तकें, पेपर सेटिंग तक में गले तक भ्रष्टाचार में डूबे हैं। उनकी सांसों की डोर माता-पिता के अहंकार से जुड