नेताजी अभिमान ना कर तू मेरा यूं अपमान ना कर कभी साईकिल पे बैठे आता है कभी झाड़ू मुझे दिखता है लालटेन से घरों को जलाया है कभी फूल कमल महकाया है कभी कलकत्ता में जाकर तू बारह सिंगा बन जाता है कभी काश्मीर के पत्थर की आजादी भी बन जाता है अंजान है तू मेरी ताकत से मैं भारत नया बनाऊंगी हर घर में खुशबू महकेगी मैं ऐसा कमल खिलाऊंगी नेताजी को वोटर की चूनौती