मेट्रो का गेट खुलते ही वो गर्भवती महिला बचते बचाते अंदर दाख़िल हुई. उम्मीद भरी नज़रों से उसने बैठे हुए लोगों की तरफ देखा और फिर ना-उम्मीदी के साथ चुपचाप खड़ी रही. कुछ लोगों ने उसको देखकर अनदेखा कर दिया तो कुछ लोगों ने थकी हुई आँखों के साथ सोने का नाटक किया. मगर ये क्या? वो लंगड़ा अपनी वैशाखी संभालते हुए खड़ा हुआ और अपनी सीट उस महिला को दे दी... वो लंगड़ा शारीरिक तौर पे विकलांग था, वो भीड़ मानसिक तौर पे. शायद उसकी वैशाखी भीड़ को ये बता रही थी कि हर लंगड़ा अपाहिज़ नहीं होता... #nojoto