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मैं! यादों में ठहर देखता हूं। इन खंडहर में कुछ कहर

मैं! यादों में ठहर देखता हूं।
इन खंडहर में कुछ कहर देखता हूं।
बिछड़े आशिकों का मैं पहर देखता हूं।
फिर लौट कर ना आया, 
वो प्यार करने वाला जोड़ा।
मैं जाति, धर्म आदि का कहर देखता हूं।

©मुसाफिर
  #इंतज़ार