मुझे आकांक्षा है पूर्णत्व की, क्योंकि संपूर्णता का कोई पर्याय नहीं होता | अधूरे टुकड़ों को जोड़कर बने हिस्सों की नहीं , जो मेरा नहीं उसे पाने की ख़्वाहिश भी नहीं , और जो मेरा ही है वहाँ किसी और अस्तित्व का प्रश्न कहाँ ? सम्पूर्ण को अधिक होने की आवश्यकता तो नहीं , सम्पूर्ण जितना भी है सम्पूर्ण है | नदी मे बहता दीप प्रकाशपुंज तो है किंतु , मंदिर के आलोकन को जरूरत है प्रकाश के स्थायित्व की | मैं बांध नहीं सकती मुट्ठी मे आसमान , किन्तु मेरे आँगन मे कुछ सितारों को तो चमकना होगा ही| मुझे तलाश है मेरी गागर के शीतल नीर की, किसी बहते हुए झरने से इस तृष्णा को विश्राम कहाँ ये अभिमान की पराकाष्ठा नहीं वरन आग्रह है स्वाभिमान का , कि मुझे आकांक्षा है पूर्णत्व की, क्योंकि संपूर्णता का कोई पर्याय नहीं होता |सुगंध #कविता #आकांक्षाएं #अभिलाषा पूर्णत्व की आकांक्षा मुझे आकांक्षा है पूर्णत्व की,क्योंकि संपूर्णता का कोई पर्याय नहीं होता | अधूरे टुकड़ों को जोड़कर बने हिस्सों की नहीं , जो मेरा नहीं उसे पाने की ख़्वाहिश भी नहीं , और जो मेरा ही है वहाँ किसी और अस्तित्व का प्रश्न कहाँ ? सम्पूर्ण को अधिक होने की आवश्यकता तो नहीं ,