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मुझे आकांक्षा है पूर्णत्व की, क्योंकि संपूर्णता

मुझे आकांक्षा  है पूर्णत्व की,
क्योंकि संपूर्णता  का कोई पर्याय  नहीं होता |
अधूरे टुकड़ों को जोड़कर बने हिस्सों की नहीं  ,
जो मेरा नहीं उसे पाने की ख़्वाहिश भी नहीं ,
और जो मेरा ही  है वहाँ किसी और अस्तित्व का प्रश्न कहाँ ?
सम्पूर्ण को अधिक होने की आवश्यकता तो  नहीं ,
सम्पूर्ण जितना भी है सम्पूर्ण है |
नदी मे बहता दीप प्रकाशपुंज तो है किंतु ,
मंदिर के आलोकन को जरूरत है प्रकाश के  स्थायित्व की  |
मैं बांध  नहीं सकती मुट्ठी मे आसमान ,
किन्तु मेरे आँगन मे कुछ सितारों को तो चमकना होगा ही|
मुझे तलाश है मेरी गागर के शीतल नीर की,
किसी बहते हुए झरने से इस तृष्णा को विश्राम कहाँ
ये अभिमान की पराकाष्ठा नहीं वरन आग्रह है स्वाभिमान का ,
कि मुझे आकांक्षा  है पूर्णत्व की,
क्योंकि संपूर्णता  का कोई पर्याय  नहीं होता |सुगंध
 #कविता  #आकांक्षाएं #अभिलाषा 
पूर्णत्व की आकांक्षा  

मुझे आकांक्षा  है पूर्णत्व की,क्योंकि संपूर्णता  का कोई पर्याय  नहीं होता |
अधूरे टुकड़ों को जोड़कर बने हिस्सों की नहीं  ,
जो मेरा नहीं उसे पाने की ख़्वाहिश भी नहीं ,
और जो मेरा ही  है वहाँ किसी और अस्तित्व का प्रश्न कहाँ ?
सम्पूर्ण को अधिक होने की आवश्यकता तो  नहीं ,
मुझे आकांक्षा  है पूर्णत्व की,
क्योंकि संपूर्णता  का कोई पर्याय  नहीं होता |
अधूरे टुकड़ों को जोड़कर बने हिस्सों की नहीं  ,
जो मेरा नहीं उसे पाने की ख़्वाहिश भी नहीं ,
और जो मेरा ही  है वहाँ किसी और अस्तित्व का प्रश्न कहाँ ?
सम्पूर्ण को अधिक होने की आवश्यकता तो  नहीं ,
सम्पूर्ण जितना भी है सम्पूर्ण है |
नदी मे बहता दीप प्रकाशपुंज तो है किंतु ,
मंदिर के आलोकन को जरूरत है प्रकाश के  स्थायित्व की  |
मैं बांध  नहीं सकती मुट्ठी मे आसमान ,
किन्तु मेरे आँगन मे कुछ सितारों को तो चमकना होगा ही|
मुझे तलाश है मेरी गागर के शीतल नीर की,
किसी बहते हुए झरने से इस तृष्णा को विश्राम कहाँ
ये अभिमान की पराकाष्ठा नहीं वरन आग्रह है स्वाभिमान का ,
कि मुझे आकांक्षा  है पूर्णत्व की,
क्योंकि संपूर्णता  का कोई पर्याय  नहीं होता |सुगंध
 #कविता  #आकांक्षाएं #अभिलाषा 
पूर्णत्व की आकांक्षा  

मुझे आकांक्षा  है पूर्णत्व की,क्योंकि संपूर्णता  का कोई पर्याय  नहीं होता |
अधूरे टुकड़ों को जोड़कर बने हिस्सों की नहीं  ,
जो मेरा नहीं उसे पाने की ख़्वाहिश भी नहीं ,
और जो मेरा ही  है वहाँ किसी और अस्तित्व का प्रश्न कहाँ ?
सम्पूर्ण को अधिक होने की आवश्यकता तो  नहीं ,