कोमलता, कृपा का बर्ताव, उदारता, शरीर, वाणी, मन को पाप कर्मों से बचाना, पुण्य कार्यों को अपने ही समझकर उनके बनाने का प्रयत्न करना, इतना सदाचार काफी है। सदाचार