आज फिर खुद से रूठ गया हूं मैं, अंधेरे से निकल वापिस अंधेरे में आ गया हूं मैं, ना जाने क्यूं तेरी एक दस्तक से डरने लगा हूं, क्या ऐसे ही ज़िन्दगी में आगे बढ़ने लगा हूं मैं। तेरी हमशक्ल परछाई भी मुझे झकझोर देती है, जितना मैंने खुदको संभाला फिर इतना ही मुझे तोड़ देती है, क्यूं ऐसा खेल खेलती है तू मेरे साथ, अगर साथ रहना है तो रह मेरे वरना क्यूं तू मुझे छोड़ देती है? मैं थक गया हूं तेरे इस परछाई से भागते भागते, अब तो आंसुओ ने भी रास्ता बदल दिया है जाते जाते, क्यूं तू इस कदर मुझे रुला रही है, क्या मैं तेरा गुनहगार हूं जो मुझे यूं सता रही है? 9 Nov. #innervoice #poetry #hindipoetry #poem #breakup