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अंतर्मन की आवाज को सुनकर भी, हमने था अनसुना कर दिय

अंतर्मन की आवाज को सुनकर भी, हमने था अनसुना कर दिया।
देखी तेरी आंखों में हैवानियत, फिर भी हमने अनदेखा कर दिया।

आ गए तेरी मीठी- मीठी प्यार की बातों में, तुझ पर भरोसा कर लिया।
तेरे प्यार पर ऐतबार करके, हमने खुद को खुद से ही जुदा कर दिया।

तड़प रहे हैं आज भी अपने अंतर्मन की अनसुनी आवाज को सुनकर के।
जाने कैसे बहक गए हमारे कदम तेरी प्यार की बातों पर ऐतबार करके।

तोड़ कर रख दी मर्यादा की सारी बेड़ियां घायल किया तन मन को।
तन के घाव तो फिर भी भर जाएंगे पर कैसे भरे हम मन के घावों को। 🎀 Challenge-397 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। अपने शब्दों में अपनी रचना लिखिए।
अंतर्मन की आवाज को सुनकर भी, हमने था अनसुना कर दिया।
देखी तेरी आंखों में हैवानियत, फिर भी हमने अनदेखा कर दिया।

आ गए तेरी मीठी- मीठी प्यार की बातों में, तुझ पर भरोसा कर लिया।
तेरे प्यार पर ऐतबार करके, हमने खुद को खुद से ही जुदा कर दिया।

तड़प रहे हैं आज भी अपने अंतर्मन की अनसुनी आवाज को सुनकर के।
जाने कैसे बहक गए हमारे कदम तेरी प्यार की बातों पर ऐतबार करके।

तोड़ कर रख दी मर्यादा की सारी बेड़ियां घायल किया तन मन को।
तन के घाव तो फिर भी भर जाएंगे पर कैसे भरे हम मन के घावों को। 🎀 Challenge-397 #collabwithकोराकाग़ज़

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