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इस विशाल देश में नन्हा स्वदेश खोजती हूं नित रच रहा

इस विशाल देश में नन्हा स्वदेश खोजती हूं
नित रच रहा है यहां उपनिवेश कौन सोचती हूं
जांचती हूं आंखों में पानी का कोशेंट
हो रही ये उर्वरा मरुदेश क्योंकर सोचती हूं
नन्हें हृदय में प्यास लेकर ढूंढती हूं
मीठे झरने की तलाश में मनवन घूमती हूं
उस जयी स्वप्निल नयन को ढूंढती हूं
पल रहे समर्थ प्रिय भारत सपन को ढूंढती हूं
एके की उस मीठी लगन को ढूंढती हूं
कमतर न बेहतर साम्य सुरभित चलन को खोजती हूं
राज तो मिल गया चौहत्तर वर्ष पहले
स्वराज सबको कब मिलेगा सोचती हूं
हाथ जो लगकर सिंहासन गढ़ रहे हैं
रोटी की तलाश में मीलों पग पग चल रहे हैं
और भली मीठी रसोईं के हैं ये अनुबंध कड़वे
अनगिनत सपने यहां चुपचाप अब भी जल रहे हैं
दरवाज़े खिड़कियां दृष्टिकोण हैं द्वय
कुछ हौसले आसमानी कह रहे हैं
कुछ आसमान के क़ैद होने की कहानी कह रहे हैं
समकोण पर जुड़ती जमीं से जो दीवारें
दो ध्रुवों में कब समता गुनेंगी सोचती हूं


 #toyou #thefairunfair #colours divided #nationforall #yqindependenceday
इस विशाल देश में नन्हा स्वदेश खोजती हूं
नित रच रहा है यहां उपनिवेश कौन सोचती हूं
जांचती हूं आंखों में पानी का कोशेंट
हो रही ये उर्वरा मरुदेश क्योंकर सोचती हूं
नन्हें हृदय में प्यास लेकर ढूंढती हूं
मीठे झरने की तलाश में मनवन घूमती हूं
उस जयी स्वप्निल नयन को ढूंढती हूं
पल रहे समर्थ प्रिय भारत सपन को ढूंढती हूं
एके की उस मीठी लगन को ढूंढती हूं
कमतर न बेहतर साम्य सुरभित चलन को खोजती हूं
राज तो मिल गया चौहत्तर वर्ष पहले
स्वराज सबको कब मिलेगा सोचती हूं
हाथ जो लगकर सिंहासन गढ़ रहे हैं
रोटी की तलाश में मीलों पग पग चल रहे हैं
और भली मीठी रसोईं के हैं ये अनुबंध कड़वे
अनगिनत सपने यहां चुपचाप अब भी जल रहे हैं
दरवाज़े खिड़कियां दृष्टिकोण हैं द्वय
कुछ हौसले आसमानी कह रहे हैं
कुछ आसमान के क़ैद होने की कहानी कह रहे हैं
समकोण पर जुड़ती जमीं से जो दीवारें
दो ध्रुवों में कब समता गुनेंगी सोचती हूं


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