ऐसे रूठो न नंदलाला मोरे फेरो न अंखियां। राह निहारे तोरी। पनघट पर गोपियां। भोर भई खग पंछी वृंद। तोरी नाम की मधुर रग सुनावे। रूठे कबतक रहोगे नंदलाल माखन भोग लगाऊं ऐसे रूठो न,,