सपनों का घर चाहते हैं सब बनाना इक सपनों का घर जहाँ वो रह सकें सुख से ज़िंदगी चैन से जहाँ हो बसर पर हक़ीक़त में कहाँ ऐसा होता है इंसान सर को छत से ढकने के लिए भी संघर्ष करता है नसीब वाले ही होते हैं जिनके ये ख्वाब होते हैं पूरे वरना गरीब तो दो जून की रोटी को भी तरसता है #collabwithकोराकाग़ज़ #kksc27 #सपनोंकाघर #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #rzwotm #restzone #ps_writeups