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मेरे अरमानों का आसमान आंसमा जितना बड़ा था पर उसने

मेरे अरमानों का आसमान
आंसमा जितना बड़ा था 
पर उसने मुझसे मेरे अरमान
 पूरे करने की आजादी छीन ली 
जब भी अरमान पूरे करना चाहा
 किसी ने रीति-रिवाज  के नाम समझाया
 तो किसी ने मर्यादा के नाम पर
 तो किसी ने इज्जत के नाम पर
 पर मेरे अरमान कहां रुकने वाले थे
 अरमानों का आसमा बड़ा होता ही रहा
 पैर बढ़ाया तो 
किसी ने पैर खींचा
 हाथ बढ़ाया तो 
किसी ने हाथ खींचा 
वो अपनी मर्जी का चोला
 मुझ पर चढ़ाता गया
  मुझे पसंद नहीं तेरा वह करना
 मुझे पसंद नहीं तेरा यह करना 
मर्यादा का नाम देकर 
मर्यादा के लिए 
इज्जत का ताज पहनाया मुझको
 मैंने अपने अरमानों का दहन किया मैंने 
फिर भी मैं तत्पर थी
 मैं आतुर थी
 अपने अरमानों से मिलने को
 जिंदा थे वह किसी मन के कोने में
ह्दय की किसी गहराई मे
आज फिर तैयार कर रही हूं
 या यह कह दूं 'मैं तैयार हूं '
 अरमानों से मिलने को 
अरमानों से मिलने को 
मेरे अरमानों का आसमान 
आंसमा जितना बड़ा था 
और यह बढ़ता रहेगा........

©Manju Sharma 'kanti'
  मेरे अरमान

मेरे अरमान #कविता

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