निर्मल गंगा की धार हूँ मैं, आओ टकराओ पहाड़ हूँ मैं, वफ़ा तो कूट-कूट कर भरी है जिसम में, पूस के महीने में फूलों का बाज़ार हूँ मैं। 🙏मिश्राजी🙏