चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं पलों से वो भारी सुबह संग रात के ले कर छाए हैं सूरज भी अलसाया सा देर सहर को चलता है और खड़ा आँगन में हो कर अपनी आंखें मलता है खिले फूल थे जो क्यारी में सर्दी से मुरझाए हैं चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं घड़ी सुस्त सी चुप्पी है और कांटा भी मौन है सुबह जागता था जो मौजीन वो भी जाने कौन है देर पुजारी ने भी घर से आकर राम जगाए हैं चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं लगे टीन की छत पर आकर बड़ियों के भी डेरे हैं और बंदर भी देर रात तक करते घर के फेरे हैं साथ मुहल्ले के कुत्ते सब उन पर ही रिसियाए हैं चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं गुड़ की पट्टी बाजारों में रोज गज़क से लड़ती है गाजर के हलवे की ख़ुश्बू उन से आगे बढ़ती हैं और आलू के चिप्स सूखा कर डब्बों में भरवाए हैं चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं उल्टे आधे फंदों में उलझी सी देख सलाई है और बनाते ऊन के गोले दुखने लगी कलाई है और डिज़ाइन वो हो जो कुदरत ने नहीं बनाए हैं चल बुनते हैं धूप का स्वेटर जाड़ों के दिन आए हैं उदासियाँ 2 @ धूप का स्वेटर ©Mo k sh K an #mokshkan #mikyupikyu #उदासियाँ_the_journey #Zen #ruhina