अपने *जीवन* की *बागडोर* न दूसरे के हाथ में दो ऐ साहेब, *कातिल* जमाना है.. *आग* भी लग जाती है और *जान* भी नहीं जाती.. पर *जनाजा* जरूर निकाल जाता है, और *कांधा* भी *नसीब* नहीं होता.. ©kalpana srivastava #बागडोर #hands