नदी """"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""" न इर्ष्या-द्वेष,न अभिमान की धारा है , हर्षित हैं सर्व प्राणी वहाँ, जहाँ-जहाँ तूने पाँव पसारा है ।। रोम- रोम धरा का पुलकित , प्राणी मिटाते प्यास जहाँ किनारा है, तू इर्ष्या-द्वेष ,न अभिमान की धारा है ।। नतमस्तक सर्व प्राणी आगे तुम्हारे, युगों-युगों तक चले तेरे सहारे। कृति तुम्हारी धरातल पर पाँव पसारा है । तू इर्ष्या -द्वेष,न अभिमान की धारा है ।। सीख मानवता को दे रही तू एक संदेश में, सर्व प्राणी हितकारी बढ़े चलो, सुख-दुःख दोनों तीरों के भेष में । निगलते जा रहे अब मानव तुझे, बने और सब प्राणी बेसहारा हैं । न इर्ष्या-द्वेष,न अभिमान की धारा ।। --------------------------------------------- रचनाकार-राजेन्द्र कुमार मंडल जन्म-10-02-1996 पता-ग्राम +पोस्ट-रामविशन पुर ,ward-06 थाना-राघोपुर,जिला-सुपौल बिहार-852111 Mob-9771199373 E-mail -rajendrakrmd97711@gmail.com नदी